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"स्वदेशी शस्त्र है समय की क्रान्ति का"

आज हम सब 'सार्थक स्वदेशी' भारतीयों का संकल्प है। 'भारत माता' की अस्मिता की रक्षा हेतु 'सार्थक स्वदेशी' पुनीत फर्ज है। कि इस आपा-धापी और अन्यान्य मतलबी पन से परिपूर्ण फरेबी विदेशी वस्तुओं आदि को त्याग कर, या उन्हें अपने साथ, अपने हित, संस्क्रती के हिसाब से जोड़कर-परिस्कृत करके ही अंगीकार-स्वीकार-प्रयोग-उपयोग आदि करें । 'स्वदेशी' का विचार और आंदोलन दोनों ही भारत में काफी लंबे समय से चले आ रहे हैं। 'स्वदेशी' आंदोलन ने देश के स्वाधीनता संग्राम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। शायद इसके कारण ही 'स्वदेशी' को सामान्यत: 'स्वाधीनता संग्राम' तक ही सीमित करके देखा जाने लगा था। हालांकि 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' आदि संगठन इसके बाद भी निरंतर 'स्वदेशी' की बात, कार्य आदि करते आ रहे हैं, परंतु देशभर में 'स्वदेशी' दोबारा एक आंदोलन के रूप में 1990 के दशक में उभरा। जब यहां आर्थिक उदारीकरण की नीति अपनाई जाने लगी। इस आंदोलन में से कई मंचों और संस्थाओं का जन्म भी हुआ। आजादी अर्थात्-आर्थिक व सांस्कृतिक आदि समस्त "सार्थक स्वदेशी आजादी" । और इसको बचाने-बढ़ाने के लिए विभिन्न गतिविधियां हम सब के स्तर से भी प्रारंभ की गईं। इसके लिये प्रथम सबसे प्रमुख काम जन प्रबोधन-जन जागरण का था, और इसके लिए हम सब "सार्थक स्वदेशी परिवार" आदि स्वजनों ने मिलकर, अन्यान्य जनजागृति प्रयासों के साथ-साथ, "सार्थक स्वदेशी टाइम्स" नाम के हिंदी साप्ताहिक अखबार के माध्यम से देश मे 'स्वदेशी' की एक और अलख जगाना शुरू किया। 15 अगस्त 1947 को जब अपना देश स्वतन्त्र हुआ, तब यह आशा बँधी थी की अब हम विकास के मार्ग पर तीव्र गति से आगे बढ़ते हुए, विश्व में एक सुखी, सम्पन्न, समृद्ध, स्वावलम्बी एवं सुदृढ़ राष्ट्र के रूप में खड़े हो सकेंगे। किन्तु आज तक के भारत पर जब हम दृष्टि डालते हैं, इधर 2-- वर्षों को छोड़कर, तो घोर निराशा ही हाथ लगती है।भारत ने अपनी 1000 साल की गुलामी में अपनी सनातन संस्कृति को छिन्न-भिन्न होते ही देखा है । आज भी पश्चिमी सभ्यता भारत पर हावी होती चली जा रही है, युवा पूर्ण रूप से पश्चिमी सभ्यता को अपनाता चला जा रहा हैं, और 'स्वदेशी वस्तुवों' तथा 'स्वदेशी भाषाओं' आदि को छोड़ रहा है। जबकि 'स्वदेशी' एक ऐसा विकल्प है, जिसके माध्यम से हम सब देश की काया बदल सकते हैं, अपने देश का अत्यधिक-अतिशीघ्र उत्थान कर सकते हैं। इसलिए आइये हम सब "सार्थक स्वदेशी जन" अपने दैनिक जीवन के उपयोग-प्रयोग में आने वाली वस्तुओं में 'स्वदेशी' का अधिक से अधिक प्रयोग-उपयोग करें, इससे देश की अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी, और देश का विकास शीघ्र होगा। भाषा और भेषज में भी 'स्वदेशी' का ही उपयोग-प्रयोग आदि करें, 'हिंदी' और 'संस्कृत' भाषा विश्व की महानतम और वैज्ञानिक भाषा हैं, यह वैज्ञानिको और नासा ने भी माना है। देश के उत्थान के लिए हम सभी को 'सार्थक स्वदेशी अभियान' चलाना चाहिए, और अधिक से अधिक 'स्वदेशी वस्तुओं' का उपयोग करना-कराना चाहिए। हमें 'स्वदेशी' के प्रति गौरव व स्वाभिमान का भाव जागृत करना-कराना होगा, तथा 'स्वदेश' में निर्मित 'स्वदेशी वस्तुओं' के उपयोग और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का संकल्प करना-कराना होगा। 'स्वदेशी' क्या- क्या है.?.इसे जानना-समझना-समझाना होगा। “स्वदेशी वस्तु नहीं चिन्तन है" "स्वदेशी तन्त्र है भारतीय जीवन का" "स्वदेशी मन्त्र है सुख शान्ति का" "स्वदेशी शस्त्र है समय की क्रान्ति का" "स्वदेशी समाधान है बेरोजगारी का" "स्वदेशी कवच है शोषण से बचने का" "स्वदेशी सम्मान है श्रमशीलता का" "स्वदेशी संरक्षक है प्रकृति पर्यावरण का" "स्वदेशी आन्दोलन है सादगी का" "स्वदेशी संग्राम है जीवन मरण का" "स्वदेशी आग है अनाचार को भस्म करने का" "स्वदेशी आधार है समाज की सेवा का" "स्वदेशी उपचार है मानवता के पतन का" "स्वदेशी उत्थान है समाज व राष्ट्र का" "स्वदेशी ही स्वालंबन है जीवन का" किसी भी देश को यदि आर्थिक, सामाजिक, तकनीकी, सुरक्षा आदि क्षेत्र में समर्थ व महाशक्ति बनना है, तो 'स्वदेशी मन्त्र' को गाना-अपनाना ही होगा, दूसरा कोई मार्ग नहीं है। विदेशी बैसाखियों पर कोई भी देश ज्यादा दिन तक नहीं टिक सकता। अंग्रेजों के आने के पहले हमारा भारत हर क्षेत्र में विकसित-परिपूर्ण-आत्मनिर्भर व महाशक्ति था। इसीलिये अंग्रेजों के शासन काल में मैकाले ने भारत की गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था को आमूलचूल बदल दिया था। पढ़ाई जाने वाली इतिहास-साहित्य आदि की किताबों में भारत के गौरवपूर्ण इतिहास में फेरबदल कर दिया गया था। भारत को गरीबों का देश, सपेरों का देश, लुटेरों का देश, हर तरह से बदहाल देश, दर्शाया गया था। जबकि इंग्लैण्ड व स्कॉटलैण्ड के ही करीब 200 इतिहासकारों ने अपने यहाँ की इतिहास की किताबों में जो भारत का इतिहास लिखा है, वह दूसरी ही कहानी कहता है.?.उसके अनुसार तो भारत सर्वसम्पन्न देश, ऋषियों का देश, हीरे जवाहरातों, संस्क्रती आदि का देश है। इसलिये 'स्वदेश' हित में आज अपनी इतिहास आदि की किताबों-साहित्य में भी हमें तुरन्त अपनी "सार्थक स्वदेशी पुरातन सत्यता-सभ्यता-संस्क्रती" आदि को फिर से सही करना-लिखना-पढ़ना-पढ़ाना भी होगा। अतः भारत में रहने वाले हर नागरिक को सम्भवतः अपने ही देश में बनी "स्वदेशी" वस्तुओं का ही प्रयोग-उपयोग करना-कराना चाहिए। 'स्वदेशी' का प्रयोग करके ही हम सब भारत को उन्नत बना सकते हैं। "सोने की चिड़िया" वाला भारत वापस ला सकते हैं। फिर से भारत को दोबारा 'विश्व गुरु' बना सकते हैं। वैसे आज की 'वर्तमान भारत सरकार' भी इसी "सार्थक स्वदेशी अभियान" को पूर्णरूपेण 'महासार्थक' कर रही है। 'राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ' आदि ने तो इस अभियान को लगभग सम्पूर्ण ही कर लिया है। यही हमारा भी मिशन-संकल्प था, है, और रहेगा। "भारत माता की जय" "जय स्वदेश भारत की जय" "जय सार्थक स्वदेशी अभियान की जय" "बन्दे मातरम" "जय हिंद" ।

त्रयंबकेश्वर त्रिवेदी "सुनीलजी"
(अवधी गीतकार--लोक रंगकर्मी)
(प्रधान संपादक)
"सार्थक स्वदेशी टाइम्स"