Home समाचार प्रमुख-समाचार कब है वरुथिनी एकादशी? जानें तिथि, पूजा का शुभ मुहूर्त, व्रत विधि और महत्व

कब है वरुथिनी एकादशी? जानें तिथि, पूजा का शुभ मुहूर्त, व्रत विधि और महत्व

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हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि का बड़ा महत्व है। यह तिथि जगत के पालनहार भगवान विष्णु जी को समर्पित है। हर माह में दो बार एकादशी व्रत आते हैं, जिन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है।

वैशाख माह कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इसे सौभाग्य प्राप्त करने वाली एकादशी कहा जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि जो कोई वरुथिनी एकादशी व्रत का पालन सच्चे मन से करता है उसे वैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है और समस्त प्रकार के पापों से छुटकारा मिलता है। इस साल यह व्रत 4 मई, शनिवार को रखा जाएगा। आइए जानते हैं वरुथिनी एकादशी व्रत का पूजा और पारण मुहूर्त, व्रत विधि और महत्व।

वरुथिनी एकादशी का मुहूर्त

एकादशी तिथि का आरंभ : 3 मई 2024 को रात 11 बजकर 24 मिनट पर
एकादशी तिथि का समापन : 4 मई 2024 शनिवार को रात 8 बजकर 38 मिनट पर
पूजा का शुभ मुहूर्त : सुबह 7 बजकर 18 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 58 मिनट तक
एकादशी व्रत का पारण : अगले दिन 5 मई, 2024, रविवार को

वरुथिनी एकादशी व्रत विधि

सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
इसके बाद कलश की स्थापना करें।
कलश के ऊपर आम के पल्लव, नारियल, लाल चुनरी बांधकर रखें।
धूप, दीप जलाकर बर्फी और खरबूजे के साथ आम का भोग लगाएं।
इसके बाद विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करें।
दिन भर व्रत रख अगले दिन व्रत का पारण करें।

वरुथिनी एकादशी तिथि का महत्व

शास्त्रों में इस बात का वर्णन मिलता है कि वरुथिनी एकादशी व्रत का महत्व भगवान श्रीकृष्ण ने पांडव पुत्र युधिष्ठिर को बताया था। कहा जाता है कि इस व्रत को जो कोई भी करता है उसे वैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है और जीवनभर सौभाग्य बना रहता है। इस व्रत को करने से मन को सुख-शांति का अनुभव प्राप्त होता है। इस दिन जगत के पालनहार विष्णु जी को तुलसी मिश्रित जल अर्पित करने से घर में मां लक्ष्मी का आगमन होता है और जीवन से दरिद्रता दूर जाती है। व्रत का फल प्राप्त करने के लिए व्रती को व्रत पारण के पश्चात खरबूजा दान करना चाहिए।

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