Home अभिमत साक्षात्कार अनुशासन और संयम से करोना पर विजय संभव है

अनुशासन और संयम से करोना पर विजय संभव है

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अंतर्राष्ट्रीय शांति शिक्षा पुरस्कारसे सम्मानित

विश्वविख्यात शिक्षाविद् डाॅ. जगदीश गाँधी, संस्थापक-प्रबन्धक,

सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ का युगानुकूल तथा वैश्विक समाधान

प्रेरक साक्षात्कार

द्वारा - संजीव कुमार शुक्ला, वरिष्ठ पत्रकार, लखनऊ

प्रश्नः (1) आप अपनी सम्पत्ति को कब से और प्रतिवर्ष किसकी प्रेरणा से घोषित करते रहे हैं?

उत्तर: हमारा मानना है कि किसी भी जन सेवक को व्यक्तिगत, सामाजिक तथा आर्थिक रूप से पारदर्शी होना चाहिए। इसी तथ्य को स्वीकार करते हुए हम सन् 2001 से प्रतिवर्ष अपनी वेबसाइट www.jagdishgandhiforworldhappiness.org आपकी सुविधा के लिए वेबसाइट का नाम स्पेस के साथ इस प्रकार पढ़ने की कृपा करें www. jagdish gandhi for world happiness. org पर तथा लखनऊ के समाचार पत्रों के माध्यम से 31 मार्च तक की अपनी व्यक्तिगत सम्पत्ति की घोषणा अप्रैल माह के प्रथम सप्ताह में करते आ रहे हैं। इस समय हमारे पास व्यक्तिगत कुल सम्पत्ति 20 लाख 72 हजार रूपयों की है। इसके अतिरिक्त हमारे पास कोई भी व्यक्तिगत भूमि, भवन या प्रापर्टी नहीं है। हम विगत 61 वर्षों से 12, स्टेशन रोड, लखनऊ में किराये के मकान में रहते हैं। हमारे पास किसी भी प्रकार की विदेशी मुद्रा, सोना, चांदी या किसी भी प्रकार के आभूषण नहीं है। तथा किसी भी बैंक में कोई लाॅकर नहीं है। किसी भी बैंक में हमारा कोई करेन्ट एकाउन्ट नहीं है। और न ही किसी भी बैंक आदि में कोई फिक्स डिपाॅजिट है। इस प्रकार उपरोक्त के अलावा हमारे पास इस संसार में कही भी और कोई भी सम्पत्ति नहीं है। मेरा सम्पूर्ण जीवन एक खुली किताब की तरह है। हमने सारी जिंदगी अपने को नहीं बल्कि अपने बच्चों के मस्तिष्क में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ और ‘जय जगत्’ के गुणों का बीजारोपण करके उन्हें विश्व नागरिक के रूप में विकसित करके अपने स्कूल को संसार में सबसे बड़ा बनाया है।

 

प्रश्नः (2) यह जानकर बहुत आश्चर्य होता है कि आप सन् 1969 से 1974 तक पांच साल तक अलीगढ़ जिले के सिकन्दराराऊ क्षेत्र से उत्तर प्रदेश में निर्दलीय विधायक (एम.एल..) रहे हैं। इसके साथ ही आप 61 वर्षों से संसार के सबसे बड़े स्कूल सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ (सी.एम.एस.) के संस्थापक-प्रबन्धक हैं। इसके बावजूद आपके पास अपना कोई निजी मकान या बड़ी सम्पत्ति नहीं है। शिक्षा के प्रति इस समर्पण तथा त्याग की कोई ख़ास वजह है?

उत्तरः     मैंने तथा मेरी पत्नी डा. भारती गांधी ने 8 जुलाई, 1959 को सिटी मोन्टेसरी स्कूल की शुरूआत 300 रूपये उधार लेकर 5 बच्चों के साथ की थी। शुरू से ही हमारा यह विश्वास है कि ‘बच्चों की शिक्षा’ संसार की समस्त संभव सेवाओं में से, जो परमात्मा को अर्पित की जा सकती है, उनमें से सर्वश्रेष्ठ सेवा है। इस युग के अवतार बहाउल्लाह ने कहा है कि:

              ष्।उवदह जीम ळतमंजमेज व िंसस जीम हतमंज ेमतअपबमे जींज बंद चवेेपइसल इम तमदकमतमक इल ं उंद जव ।सउपहीजल ळवक पे जीम मकनबंजपवद व िबीपसकतमदए इनपसकपदह जीमपत बींतंबजमत ंदक पदबनसबंजपदह पद जीमपत जमदकमत ीमंतजे जीम सवअम व िळवकण्ष् हिन्दी भावार्थ -सर्वशक्तिमान परमेश्वर को मनुष्य की ओर से अर्पित की जाने वाली समस्त सम्भव सेवाओं में से सर्वाधिक महान सेवा है- (अ) बच्चों की शिक्षा, (ब) उनके चरित्र का निर्माण तथा (स) उनके हृदय में परमात्मा के प्रति अटूट प्रेम उत्पन्न करना। और हम सी.एम.एस. की शिक्षा के माध्यम से प्रत्येक बच्चे को सर्वश्रेष्ठ भौतिक शिक्षा के साथ ही मानवीय और आध्यात्मिक शिक्षा भी प्रदान करके उसे प्रभु भक्त और एक अच्छा इंसान बनाकर प्रभु सेवा का काम कर रहे हैं। इस प्रकार शिक्षा हमारा व्यवसाय नहीं है। हम सी.एम.एस. को व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं बल्कि प्रभु सेवा के लिए चला रहे हैं।

प्रश्नः(3) आप अपने विद्यालय सी.एम.एस. के माध्यम से विश्व में एकता स्थापित करने के लिए अपने देश की प्राचीन एवं महान संस्कृतिवसुधैव कुटुम्बकम्’, ‘जय जगतएवं भारतीय संविधान के विश्व एकता के प्राविधानअनुच्छेद 51 ;।तजपबसम 51द्धष् की शिक्षा अपने छात्रों को दे रहे हैं। क्या इन शिक्षाओं को छात्रों को देने से विश्व में एकता स्थापित हो जायेगी?

उत्तरः     भारत की ‘वसुधैव कुटुम्बकम’् की प्राचीन एवं महान संस्कृति पर आधारित भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51 हमारे देश को विश्व के अन्य देशों से अलग एक विशिष्ट स्थान दिलाता है। विश्व एकता का ऐसा अनूठा प्राविधान संसार के किसी भी अन्य देश के संविधान में नहीं है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 के अनुसार:

              भारत के प्रत्येक नागरिक एवं राज्य का यह उत्तरदायित्व है कि वह -

              (ए)         अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा की अभिवृद्धि करेगा,

              (बी)         राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण संबंधों को बनाए रखने का प्रयत्न करेगा,

              (सी)         अन्तर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान करेगा अर्थात उसका पालन करेगा तथा

              (डी)         अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को माध्यस्थम् द्वारा निपटारे का प्रयास करेगा।

              इस प्रकार भारत का संविधान विश्व का एकमात्र ऐसा संविधान है, जिसके अनुच्छेद 51 में अन्तर्राष्ट्रीय कानून के प्रति सम्मान एवं अन्तर्राष्ट्रीय कानून बनाने हेतु ”विश्व संसद“ बनाने की आवश्यकता की ओर जनमानस का ध्यान आकर्षित किया गया है।

              हम सी.एम.एस. की शिक्षा के माध्यम से बाल्यावस्था से ही प्रत्येक बच्चे के मस्तिष्क में पारिवारिक एकता, धार्मिक एकता एवं विश्व एकता के विचारों का भी बीजारोपण कर रहे हैं। इसके लिए हम अपने प्रत्येक शैक्षिक समारोह के प्रारम्भ में बच्चों से विश्व संसद, सर्वधर्म प्रार्थना एवं विश्व एकता की प्रार्थना के कार्यक्रम आयोजित करवाते है ताकि बाल्यावस्था से ही ये ईश्वरीय एवं सार्वभौमिक विचार प्रत्येक बच्चे के संस्कारों में स्थायी रूप से स्थापित हो जाये और बड़े होकर वे ईश्वर भक्त बनें तथा विश्व संसद स्थापित कर विश्व में स्थायी रूप से एकता तथा शान्ति लायें। मेरा यह पूरा विश्वास है कि आने वाले समय में सी.एम.एस. के बच्चे बड़े होकर विश्व के सभी राष्ट्रों के बीच एकता अवश्य स्थापित करेंगे।

              इसलिए महाविनाश की ओर तेजी से बढ़ती इस दुनियाँ को बचाने के लिए ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’, ‘जय जगत’ एवं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 के ”विचार“ को सारे संसार में फैलाने तथा विश्व संसद के गठन के लिए काम करने का समय अब आ गया है।

प्रश्नः (4) आप 1959 में लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रहे हैं। अध्यक्ष चुने जाने के बाद शपथ ग्रहण समारोह में आपके निमंत्रण पर भारत के तात्कालीन प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू जी मुख्य अतिथि के रूप में पधारे थे।

              उसके बाद आप स्वयं भी 1969 से 1974 तक 5 वर्षों के लिए उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के सिकन्दराराऊ क्षेत्र से निर्दलीय विधायक चुने गये। इस दौरान आपने श्री वी. वी. गिरी जी को भारत के राष्ट्रपति पद के चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़ा किया और वे संसार के प्रथम निर्दलीय राष्ट्रपति चुने गये। राजनीति में इतनी गहरी अभिरूचि होने के बावजूद भी आपने राजनीति क्यों छोड़ दी? जबकि राजनीति में एक बार आ जाने के बाद कोई भी राजनैतिक नेता कभी भी राजनीति नहीं छोड़ता है।

उत्तरः     इस सन्दर्भ में मैं आपको बताना चाहूँगा कि विधायक रहते हुए ही मैं आज से 46 वर्ष पूर्व 1974 में एक शैक्षिक सम्मेलन में भाग लेने के लिए इंग्लैण्ड गया था। वहाँ जाकर लन्दन में मैंने इण्डिया इन्टरनेशनल क्लब की स्थापना की एवं इसी क्लब के माध्यम से मैंने वहाँ 17, 18 व 19 दिसम्बर, 1974 को ईलिंग टाउनहाल के प्रसिद्ध विक्टोरिया हाल, लन्दन में ‘शिक्षा द्वारा विश्व शान्ति’ विषय पर तीन दिवसीय द्वितीय ‘इण्टरनेशनल यूथ कान्फ्रेन्स’ ;2दक प्दजमतदंजपवदंस ल्वनजी ब्वदमितमदबम वद ॅवतसक च्मंबम जीतवनही म्कनबंजपवदद्ध का सफलतापूर्वक आयोजन किया।

              इस सम्मेलन में विश्व के 47 देशों के इंग्लैण्ड निवासी 220 युवकों ने हिस्सा लिया था। लंदन में ही 19 दिसम्बर, 1974 को मैंने विश्व सरकार के गठन के लिए प्दजमतदंजपवदंस थ्वतनउ वित ॅवतसक ळवअमतमदउमदज की स्थापना की। जिसमें इंग्लैण्ड निवासी विश्व के 20 देशों के 109 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

              उस सम्मेलन में कुछ बहाई युवकों ने अपने सम्बोधन में बताया कि पारिवारिक एकता, धार्मिक एकता एवं विश्व एकता आज के युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है। सम्पूर्ण मानव जाति की एकता के इन बहाई विचारों से मैं और मेरी पत्नी श्रीमती भारती गाँधी अत्यधिक प्रभावित हुए और लंदन में ही हम दोनों ने बहाई धर्म स्वीकार कर लिया। बहाई धर्म की शिक्षाओं में कहा गया है कि ईश्वर एक है, सभी धर्म एक हैं तथा सम्पूर्ण मानवजाति एक ही परमपिता परमात्मा की संतानें हैं।

              बहाई धर्म में राजनीति में भाग लेने की मनाही है। बहाई धर्म का मानना है कि राजनीति में सामान्यतया अपनी प्रशंसा तथा दूसरों की बुराई की जाती है, जो आत्मा के विकास में बाधक है। वर्ष 1977 में बहाई धर्म की शिक्षाओं से विमुख होकर मैंने एक बार फिर से उत्तर प्रदेश विधान सभा का उप-चुनाव लड़ने का निर्णय किया। किन्तु मेरी बेटी गीता गाँधी किंगडन, जो कि उस समय केवल 14 वर्ष की थी, बेटी गीता ने मुझे स्मरण दिलाया कि बहाई धर्म में राजनीति की मनाही है, क्योंकि राजनीति द्वारा आत्मा का विकास मुश्किल है।

              उसने मुझसे कहा पापा, यदि आप बहाई धर्म की शिक्षाओं के विपरीत जाकर राजनीति में फिर से भाग लेंगे तो आपने बहाई धर्म के द्वारा हमें जो मानव जाति की सेवा करने का महान एवं नैतिक लक्ष्य दिया है, उसका क्या होगा? हमने बहाई धर्म को स्वीकार करके इसके संस्थापक बहाउल्लाह के प्रति जो विश्वास व्यक्त किया है, हमारे उस विश्वास का क्या होगा? तथा आप मेरे पिता हैं और आपके प्रति मेरे विश्वास का क्या होगा? तब मेरे मस्तिष्क में यह विचार आया कि मैं किसी भी कीमत पर अपनी बेटी का जो बहाई धर्म एवं उसके संस्थापक बहाउल्लाह के प्रति अटूट विश्वास है, उसको कम नहीं होने दूंगा और मैंने उसी दिन से राजनीति को सदैव के लिए त्याग दिया।

              इसके बाद मैंने अपनी आत्मा को विनाश होने से बचाने के लिए और अपनी आत्मा के विकास में सर्वाधिक योगदान देने के लिए अपनी बेटी गीता गांधी को अपनी ‘आध्यात्मिक माँ’ मानते हुए बच्चों की शिक्षा को ही अपने जीवन का परम ध्येय एवं एकमात्र उद्देश्य बना लिया।                  

              प्रश्नः (5) आपके जीवन में महात्मा गांधी जी और संत विनोबा भावे जी के जीवन एवं उनकी शिक्षाओं का               क्या प्रभाव पड़ा और क्यों?

उत्तरः     मैं बचपन से ही महात्मा गांधी जी की सत्य, अहिंसा, सेवा, सादगी एवं सर्व-धर्म समभाव की शिक्षाओं तथा उनके आध्यात्मिक शिष्य संत विनोबा भावे की ‘जय जगत्’ की अवधारणा से अत्यधिक प्रभावित रहा हूँ।

              मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के बरसौली गांव में 10 नवम्बर, 1936 को एक गरीब खेतिहर परिवार में हुआ है। मेरी माता स्व. श्रीमती बासमती देवी एक धर्म परायण महिला थीं। और मेरे पिता स्व0 श्री फूलचन्द्र अग्रवाल जी गाँव के लेखपाल थे। मेरे चाचाजी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। वे महात्मा गाँधी जी के परम अनुयायी थे और वे मुझे बचपन से ही महात्मा गांधी जी के जीवन से जुड़ी हुई अनेक प्रेरणादायी कहानियों एवं शिक्षाओं को सुनाया करते थे, जिनका बचपन से ही मेरे जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा।

              महात्मा गाँधी जी का विश्वास था कि “यदि आप विश्व में वास्तविक शांति चाहते हैं, तथा यदि आप युद्धों के विरूद्ध वास्तविक युद्ध छेड़ना चाहते हैं तो आपको इसकी शुरूआत बच्चों से ही करनी होगी।” महात्मा गाँधी के इन्हीं शब्दों और संत विनोबा भावे जी के ‘जय जगत्’ की अवधारणा से प्रेरित होकर मैंने सारे विश्व में शांति एवं एकता की स्थापना के लिए बच्चों की शिक्षा को ही अपनी सेवा का माध्यम बनाया।

              इसके साथ ही मेरे जीवन पर संत विनोबा भावे जी व उनकी ‘जय जगत्’ (विश्व की जय हो) की अवधारणा का भी अत्यधिक प्रभाव पड़ा। बताते हैं कि एक बार जय जगत् के बारे में संत विनोबा भावे जी से किसी ने पूछा कि दो राष्ट्रों के बीच झगड़ा होने से कोई एक राष्ट्र हारेगा तथा कोई एक राष्ट्र जीतेगा। ऐसे में सारे जगत् की जय (विजय) कैसे होगी? तब उन्होंने कहा था कि बच्चों के सुरक्षित भविष्य की ख़ातिर यदि विश्व के सभी देश यह बात हृदय से स्वीकार कर लें कि आपस में लड़ना ठीक नहीं है तो सारे विश्व में ‘जय जगत्’ हो जायेगी। अर्थात यदि दो राष्ट्र मिलकर ‘जय जगत्’ की भावना से आपसी परामर्श करें तो किसी एक राष्ट्र की हार-जीत नहीं बल्कि सभी राष्ट्रों की जीत होगी।

              महात्मा गांधी के शिष्य संत विनोबा भावे के इसी ‘जय जगत्’ (विश्व की जय हो) के नारे को हमारे विद्यालय ने अपनी स्थापना के समय से ही आदर्श वाक्य (उवजजव) के रूप में अपनाया है और वर्ष 1959 में सी.एम.एस. में सबसे पहले दाखिल हुए 5 छात्रों की स्लेट में ‘जय जगत्’ लिखकर पढ़ाई की शुरूआत कराई गयी थी। इस प्रकार विगत 61 वर्षों से हम अपने बच्चों के मन-मस्तिष्क में जय जगत् की अवधारणा का भी बीजारोपण कर रहे हैं।

प्रश्नः (6) किस घटना के कारण आपने अपना नाम जगदीश प्रसाद अग्रवाल से बदलकर जगदीश गांधी रख लिया?

उत्तरः     15 अगस्त 1947 को आजादी मिलने के साढ़े पांच महीने के अन्दर ही 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गाँधी जी की हत्या का हृदय-विदारक समाचार सुनकर मेरा मन अत्यन्त विचलित हो उठा। उस समय मैं कक्षा 6 का छात्र था। मैंने उसी समय महात्मा गाँधी जी की शिक्षाओं को अपने जीवन का आदर्श बनाने का निर्णय ले लिया। जिसके बाद मैंने सबसे पहले अपने पिता जी की सहमति से विद्यालय के प्रधानाचार्य को पत्र लिखकर अपना नाम ‘जगदीश प्रसाद अग्रवाल’ से बदलकर ‘जगदीश गाँधी’ करने का निवेदन किया। इसके साथ ही मैंने जीवन-पर्यन्त महात्मा गाँधी जी की शिक्षाओं पर चलने का संकल्प भी लिया। तब से लोग मुझे ‘जगदीश गाँधी’ के नाम से ही जानते हैं और तभी से मैं अधिकांशतया खादी के वस्त्र पहनता हूँ। मेरा मानना है कि खादी वस्त्र ही नहीं एक व्यापक सेवा का विचार है।


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