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मन के विचार

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(सुशील कुमार "जिददू")



जीवन का वह स्वरूप जो हमारे बचपन में था क्या उस परिवेश मे आज हम जी रहे है नही, क्योंकि वह परिवेेश जिसमें हमारा बचपन बीता है। उसे हम अपने बच्चों को देने का साहस नही  कर पा रहे है, , बस यही से जीवन का संकरा रास्ता शुरू हो जाता है।
पहले हम बासी खाना ठंठ में गर्म कर खाते थे तो।लगता था कि शाही पनीर कुछ नही है लेकिन आज अगर हमारी  पत्नी परेशान हो और शाम की रोटी को पुनः गर्म कर दे दे तो हमारा  गुस्सा सातवे आसमान पर हो जाता है, क्यो ? कभी विचार किया ? नही !
, आजकल हम नौकरी के चक्कर मे अपनी बीबी केे साथ गांव छोड़ कर शहर में 4 या 5 हजार रुपए का कमरा किराए पर लेकर अपना जीवन बिताने चले आते है , जिसके चलते गांव घर और बूढ़े, माता पिता, भाई, बहन, नाते रिस्तेदार जो थे सब बेगाने हो जाते है, हम 40 या 100 km दूर रहते है लेकिन अपने गांव, माता पिता के पास त्यौहार होली या दीवाली को जाते है और दूसरे ही दिन वापस हो जाते है क्यो ? पहले तो हमारी  यह आदत।नही थी अब हम कितने बदल गए है। मेरे बच्चे जिन्होंने जीवन जिया ही नही 3 साल के हुए उन्हें स्कूल भेज दिया बढा से बस्ता दे दिया, होमवर्क दे दिया, उठते बैठते पढ़ो पढ़ो की रट लगवा दिया, कभी संस्कार, प्यार, बुजुर्गो के पास बैठने नही दिया, मिट्टी में खेलने नही दिया, बच्चे तो पढ़ गए लेकिन संस्कार विहीन, अपनो से दूर हो गए, और अब हम भी धीरे धीरे उम्र की ढलान पर आ रहे है, वही बच्चो को नौकरी मिल गई उनकी बीबी आ गई,
फिर वही 30 साल पुराना इतिहास दुहराना शुरू हुआ, अब हम अकेले हो गए, अपने माता पिता की तरह  घुट घुट कर जीवन को काटने को मजबूर है ।  अब हमे भी वही जीवन मिल गया है ऐसी स्थिति मे रिश्ते, नाते, भाई बन्धु हमें याद आने लगे,
अपनों के बिछुड़ने की पीड़ा का अब हमको एहसास हुआ तो दुनिया काफी दूर निकल चुकी थी और हम अपनो से काफी अलग-थलग हो गए थे, , लेकिन हम कुछ भी  नही कर सकते है,
अरे इंसान जो पीड़ा तूने अपनो को दिया है वही पीड़ा अब तुझे वही अपने दे रहे है तो गलत क्या है ? आखिर जो संस्कार, ज्ञान, विद्या अपनो को दिया वही अब तुम्हे मिल रही है, तो कस्ट क्यो ?
यह जीवन अनमोल है, पैसा कमाने के लिए अपनो को कभी नही छोड़ना चाहिए, जब कभी दुःख आता है तो पगले ! यही अपने ढाल बन कर उस गम, दुख को आईने की शकित दे कर बांट लेते है, तुम फिर एकबार आगे बढ़ चलते हो, लेकिन उसके लिए अपनो से दूर नही जाना चाहिए, कारण क्या है यह भी देख ले...
20 साल तक पढ़ाई लिखाई, 20 से 30 तक नौकरी की भागदौड़, नौकरी मिली तो 60 साल तक काम धाम उसके।बाद जीवन कितना बचता है यह हम सभी को मालूम है। अब 20 से 60 साल के बीच 40 साल में 20 साल रात होती है, बचे 20 साल अब आप 20 साल में यदि अपनो को साथ लेकर चले तो 60 के आगे का जीवन अच्छा होगा वरना यही 20 साल 60 के ऊपर भारी दिखता है।
सोचो, अपनो से दूर मत रहो, अपने तो अपने होते है
प्यार से जीवन जिओ और लोगो के साथ सुख में यदि शामिल न हो सके तो कोई बात नही, लेकिन अपनो के दुःख में शामिल होकर आप देवत्व स्वरूप धारण कर सकते है।

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