एक मई को यू तो सभी पत्रकार संगठन परंपरागत रूप से "मई दिवस" (श्रमिक दिवस) के रूप में कई दशक पूर्व से ही मनाते आ रहे हैं। यूपी जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन (उपजा) और यूपी वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन और अन्य पत्रकार संगठनों की ओर से इस अवसर पर अलग-अलग आयोजन की पूर्व समय से ही एक लंबी परंपरा रही है । इन पत्रकार संगठनों द्वारा "श्रमिक दिवस" को लेकर अपने अपने स्तर पर पूर्व मे आयोजन भले ही अलग किये जाते रहे हों, लेकिन पत्रकारों और समाचार पत्र कर्मचारियों के हित हेतु इनके मुद्दे लगभग समान ही रहे हैं। इस बार यानी कि 2020 का मई दिवस (श्रमिक दिवस) कोरोना संक्रमण के चलते एक विषम परिस्थिति में आया है। यह स्थिति ऐसी है जिसने समूचे विश्व के सामने कई तरह के संकट और चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। इसी संकट की “काली छाया” मीडिया पर भी पड़ती नजर आ रही है। यह सही है कि कोरोना के दुष्प्रभावों ने मीडिया जगत के अर्थतंत्र को भी बुरी तरह से प्रभावित किया है और इसके चलते इनके राजस्व में कमी भी हो रही है। ऐसी स्थिति में जो सबसे बड़ा संकट मंडराता नजर आ रहा है, वह है - मीडिया जगत मे पत्रकारों और गैर पत्रकार कर्मचारियों की नौकरियों पर । अनेक प्रमुख संस्थान कर्मचारियों की संख्या में कमी करने की घोषणा कर चुके हैं या योजना बना रहे हैं। दूसरी ओर कुछ संस्थानों ने वेतन कटौती की योजनाएं बनाई हैं। इन दोनों ही स्थिति में पत्रकारों के सामने बेरोजगार होने से लेकर आर्थिक संघर्ष की स्थिति खड़ी हो सकती है। इसलिए आज “मई दिवस” पर सबसे बड़ी आवश्यकता यह है कि पत्रकार संगठन व पत्रकारो के नेता जन शुभकामनाओं और बधाई से इतर विचार करें कि कैसे पत्रकारों की नौकरियां बचें और उनके वेतन भत्तों में किसी तरह की कटौती न हो। पत्रकार उस सामाजिक आर्थिक परिवेश में कार्य करते हैं, जिसमें किसी भी तरह की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है। पत्रकारों के पास ना तो सामाजिक सुरक्षा है, और न ही आर्थिक सुरक्षा। पत्रकारों को कोरोना के संक्रमण के इस दौर में भी अन्य कोरोना योद्धाओं की तरह जूझना पड़ रहा है। लेकिन, बाकी सबको सुरक्षा की गारंटी है, लेकिन पत्रकारों को नहीं। आज पत्रकार संगठनो को इस पर विचार करने की आवश्यकता है। इनको पत्रकारों के हितार्थ केन्द्र और राज्यों की सरकारों से यह मांग यह मांग करने की आवश्यकता है कि वह मीडिया संस्थानों को निर्देशित करे कि किसी भी पत्रकार या मीडियाकर्मी को कोरोना के आर्थिक संकट के नाम पर नौकरी से नहीं निकाला जाए। दूसरी यह है कि जो संस्थान वेतन में तीस से लेकर पचास प्रतिशत तक की कमी करने का विचार कर रहे हैं, उन्हें ऐसा करने से रोके। साथ ही केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों द्वारा राज्यों के मीडिया संस्थानों को यह निर्देशित करना चाहिए कि कोई भी संस्थान को बंद न किया जाए।
इन विषम परिस्थितियों में यह “मई दिवस” पत्रकार संगठनों को यह विचार करने और आगे की रणनीति बनाने के लिए प्रेरित करता है, कि कैसे मीडिया का यह क्षेत्र बचे और कैसे “पत्रकार और पत्रकारिता” सुरक्षित रह सकें। इसके लिए इस समय एक साझी रणनीति की आवश्यकता है। ऐसे मे भारतीय श्रमजीवी पत्रकार महासंघ और नेशनल यूनियन आफ जर्नलिस्ट्स ( इण्डिया) और अन्य पत्रकार संगठनो को एक साझा मंच बनाकर इस लड़ाई को लड़ने के लिए आगे आना चाहिए । जिससे आने वाले समय मे आने वाले संभावित आर्थिक संकट काल से पत्रकारिता जगत व पत्रकारों को बचाया जा सके ।
सुशील कुमार "जिददू" - संपादक