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फ्रांस ने भारत को दिया परमाणु पनडुब्बियां बनाने का ऑफर

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फ्रांस ने भारत को एक ऐसा पेशकश की है जिससे चीन एक बार फिर से भड़क सकता है। दरअसल फ्रांस ने भारत को परमाणु पनडुब्बी (न्यूक्लियर सबमरीन) सौदे की पेशकश की है। ये पेशकश ऐसे समय में आई है जब भारतीय नौसेना पहले से ही आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से गुजर रही है।

अगर फ्रांस के साथ डील फाइनल हो जाती है तो यह भारतीय नौसेना के लिए एक बड़ा बूस्टर होगा।

फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, डील के तहत फ्रांस 6 परमाणु पनडुब्बियों को विकसित करने के लिए भारत के साथ काम करेगा। फ्रांस ने अपने बाराकुडा-क्लास सबमरीन प्रोग्राम से पारंपरिक तकनीक साझा करने की भी पेशकश की है। बता दें कि बाराकुडा-क्लास सबमरीन परमाणु हमला करने में सक्षम पनडुब्बी है। इसे फ्रांसीसी नौसेना के लिए फ्रांसीसी शिपबिल्डर नेवल ग्रुप द्वारा डिजाइन किया गया है। भारत के लिए फ्रांस की पेशकश उस डील के समान है जिसे उसने पहले ब्राजील को पेश किया था। ब्राजील अब फ्रांसीसी सहायता से अपनी पहली परमाणु पनडुब्बी विकसित कर रहा है।

चीन के लिए बड़ा झटका क्यों?

हाल ही में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन (AUKUS) ने परमाणु संचालित पनडुब्बी समझौते की घोषणा की थी, जिसका मकसद हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के आक्रामक रवैये का मुकाबला करना है। अब फ्रांस ने इसी तरह की पेशकश भारत को की है। चीन हिंद महासागर में अपनी ताकत बढ़ाने की कोशिश में लगा है। ऐसे में ड्रैगन की आक्रामकता का जवाब देने के लिए भारत-फ्रांस एक साथ काम कर सकते हैं। भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों ही अपनी-अपनी नौसेनाओं के लिए परमाणु पनडुब्बियां हासिल करने की कतार में हैं। ऐसे में चीन के लिए भविष्य में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपना प्रभुत्व बनाए रखना मुश्किल हो सकता है।

अत्मनिर्भर भारत के लिए होगा बड़ा बूस्ट

अगर भारतीय नौसेना फ्रांस के प्रस्ताव पर मुहर लगा देती है, तो यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार की आत्मनिर्भर भारत (मेक इन इंडिया) पहल के लिए बड़ी उपलब्धि होगी। भारत ने आत्मनिर्भर भारत पहल के हिस्से के तहत 'प्रोजेक्ट 75 अल्फा' लॉन्च किया है। इस कार्यक्रम के तहत भारतीय नौसेना का लक्ष्य छह परमाणु-संचालित पनडुब्बियों की खरीद करना है। भारत सरकार ने फरवरी 2015 में इस परियोजना को मंजूरी दी थी।

AUKUS की डील पर भड़का है चीन

ऑकस 2021 में अस्तित्व में आया और इसमें ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल है। ऑकस का मकसद हिंद-प्रशांत में चीन के आक्रमक रवैया से निपटना है। पनडुब्बी करार इन तीनों देशों के बीच सुरक्षा समझौते का एक भाग है। ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री अल्बनीज और ब्रिटिश प्रधानमंत्री सुनक के साथ सैन डिएगो में यूएस राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा, ‘‘2030 के दशक की शुरुआत में कांग्रेस के समर्थन और अनुमोदन के साथ अमेरिका तीन वर्जीनिया-श्रेणी की पनडुब्बियों को ऑस्ट्रेलिया को बेचेगा, अगर जरूरत हुई तो दो और पनडुब्बियां बेचेगा...।’’

बाइडन ने कहा कि ‘एसएसएन-एयूकेयूएस’ एक अत्याधुनिक मंच होगा, जिसे तीन देशों से पनडुब्बी प्रौद्योगिकी का सर्वोत्तम लाभ उठाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। ‘एसएसएन-एयूकेयूएस’ ब्रिटेन की अगली पीढ़ी के एसएसएन डिजाइन पर आधारित होगा, जिसमें अत्याधुनिक अमेरिकी पनडुब्बी प्रौद्योगिकियों को शामिल किया गया है और इसे ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन दोनों द्वारा बनाया और तैनात किया जाएगा। एसएसएन से तात्पर्य परमाणु संचालित पनडुब्बी है और एयूकेयूएस (ऑकस) ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका के बीच हिंद प्रशांत के लिए किए सुरक्षा समझौते को कहा जाता है।

‘ऑकस’ खतरनाक रास्ते पर, पनडुब्बी करार एनपीटी का उल्लंघन : चीन

चीन ने अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया द्वारा घोषित परमाणु संचालित पनडुब्बी करार की निंदा करते हुए कहा कि यह समझौता परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) का उल्लंघन है और तीनों देश ‘‘खतरनाक और गलत रास्ते पर जा रहे हैं।’’ समझौते की घोषणा पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि ऑकस संधि के तहत परमाणु पनडुब्बियों और अन्य अत्याधुनिक सैन्य प्रौद्योगिकी पर सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए तीन देशों के प्रयास एक ‘‘शीत युद्ध की मानसिकता’’ थी, जो हथियारों की होड़ को बढ़ावा देगी और क्षेत्रीय शांति एवं स्थिरता को नुकसान पहुंचाएगी।

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