Home हलचल सियासत 2004 में हार, फिर दो बार सरकार; कोनराड संगमा कैसे बने मेघालय के चाणक्य

2004 में हार, फिर दो बार सरकार; कोनराड संगमा कैसे बने मेघालय के चाणक्य

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कोनराड के संगमा ने मंगलवार को मेघालय के मुख्यमंत्री के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल की शपथ ली। इसके साथ ही उन्होंने सियासत में वो मुकाम हासिल कर लिया, जो उन्हें पिता पीए संगमा की छाया से निकालकर एक कुशल राजनेता के रूप में स्थापित करता है।

साल 2004 में हार से शुरुआत करने के बाद लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के इस सफर में उन्होंने खुद को मेघालय के चाणक्य के रूप में भी साबित किया है। आइए जानते हैं किन पड़ावों से गुजरकर यहां तक पहुंचे हैं कोनराड संगमा।

वो पहली हार
अमेरिका और ब्रिटेन में पढ़े-लिखे कोनराड संगमा ने 2004 में पहला चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में उन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा था। हालांकि, उसके बाद 45 वर्षीय कोनराड संगमा एक शक्तिशाली नेता के रूप में उभरे और हर चुनाव के साथ मजबूत होते गए। संगमा की पार्टी एनपीपी ने 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से दो कम 19 सीटें जीतीं थीं। कांग्रेस के सबसे अधिक विधायक जीते थे, लेकिन इसके बावजूद कोनराड संगमा ने तब भी भाजपा सहित कई अन्य दलों के साथ गठबंधन करके सरकार बना ली थी। इस बार भी संगमा एक ऐसा गठबंधन बनाने में सफल रहे जिसमें यूडीपी और एचएसपीडीपी के साथ ही निर्दलीय भी शामिल हैं। उन्होंने इस तरह से विधानसभा में तीन चौथाई समर्थन जुटा लिया।

हालात को भांपने का हुनर
कोनराड संगमा ने विधानसभा चुनाव से पहले ही हालात को भांप लिया था। उन्हें दो बातों का बहुत कायदे से एहसास हो गया था। पहला तो यह कि पिछले चुनाव में उनसे अधिक सीटें लाने वाली कांग्रेस, पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा के टीएमसी में शामिल हो जाने के चलते और कमजोर पड़ गई है। दूसरा, मुकुल संगमा के व्यक्तिगत करिश्मे के बावजूद मेघालय के लोग टीएमसी जैस नई पार्टी को लेकर विश्वस्त नहीं हैं। पार्टी के सहयोगियों का कहना है कि इससे उन्हें काफी मदद मिली। वह एंटी इंकम्बैंसी फैक्टर के साथ-साथ विरोधियों द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपों से निपटने की सटीक रणनीति बना ली।

इस तरह खेला दांव
अब संगमा ने अगला दांव जो खेला वह ये कि उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन से किनारा करके अकेले दम चुनाव लड़ा। कोनराड का कैलकुलेशन सही साबित हुआ। पार्टी की स्थानीय जड़ों पर जोर देने वाले प्रचार अभियान पर ध्यान केंद्रित करके, उन्होंने पिछली बार की 19 के मुकाबले इस बार 26 सीटें जीतीं। इतना ही नहीं, उनकी पार्टी की वोट हिस्सेदारी करीब 21 प्रतिशत से बढ़कर 31 प्रतिशत से अधिक हो गई। हालांकि, बहुमत के लिए 31 सीटों का जादुई नंबर हासिल करने के लिए उन्होंने फिर से भाजपा की तरफ हाथ बढ़ा दिया। अब कोनराड को पूरी उम्मीद है कि भाजपा से उन्हें सिर्फ विधायकों का समर्थन ही नहीं, बल्कि केंद्र सरकार से सहायता भी मिलेगी।

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