Home हलचल सियासत अमित शाह नहीं, इन 3 नेताओं को BJP ने दिया 2024 में 400 से अधिक सीटें जिताने का टारगेट

अमित शाह नहीं, इन 3 नेताओं को BJP ने दिया 2024 में 400 से अधिक सीटें जिताने का टारगेट

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अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए महज एक साल का समय ही बचा है। भाजपा, कांग्रेस समेत सभी दलों ने अपने-अपने स्तर पर तैयारियां शुरू कर दी हैं, लेकिन तमाम सर्वे और चुनावी विश्लेषकों के अनुसार, भाजपा को अभी बढ़त हासिल है।

विपक्ष भी अब तक एकजुट नहीं हो सका, लेकिन इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा ने 2024 आम चुनाव के लिए नया टारगेट सेट कर दिया है। यह टारगेट 400 से अधिक सीटें जीतने का है, जोकि 2019 में बीजेपी को मिली 303 सीटों की तुलना में कहीं अधिक है। उल्लेखनीय है कि लोकसभा में कुल सांसदों की संख्या 545 है।

आम चुनाव में जीत दर्ज करने के उद्देश्य से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पिछले दिनों अहम फैसला लिया। इसके तहत उन्होंने तीन सदस्यीय टीम नियुक्त की। इन तीन नेताओं में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह नहीं, बल्कि अन्य नेता शामिल हैं।इस बैकरूम टीम में सुनील बंसल, विनोद तावड़े और तरुण चुग शामिल हैं। ये तीनों नेता पार्टी के महासचिव हैं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, यह टीम 2024 के लोकसभा चुनावों में उम्मीदवारों के लिए रणनीतियों पर काम करेगी। इनकी भूमिका उन सीटों की पहचान करने की भी होगी, जहां पर पार्टी पिछले 2019 के लोकसभा चुनाव में दूसरे नंबर पर आई थी।

इसके अलावा, इस टीम पर जिम्मेदारी संबंधित राज्य भाजपा इकाइयों के समन्वय में संभावित उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट करने की भी होगी। चुनावी कवायद के अलावा, टीम अपने मूल समर्थकों से परे संगठन की स्वीकार्यता को अधिकतम करने के लिए सार्वजनिक आउटरीच कार्यक्रमों की रणनीति भी बनाएगी। जानिए, कौन हैं सुनील बंसल, तरुण चुग और विनोद तावड़े और उनकी क्या हैं खूबियां...

सुनील बंसल
तीन सदस्यीय टीम में सुनील बंसल को जगह मिलने के पीछे की सबसे बड़ी वजह उनके चुनाव प्रबंधन कौशल, भाजपा नेतृत्व का उन पर भरोसा होना माना जा रहा है। बंसल ने पिछले कई अहम चुनाव में भाजपा के लिए रणनीति बनाई है और पार्टी को बड़ी जीत दिलवाई। साल 2017 और 2022 का यूपी विधानसभा चुनाव हो या फिर साल 2019 का लोकसभा चुनाव, पर्दे के पीछे रहते हुए सुनील बंसल को भाजपा को बड़ी जीत दिलवाने का क्रेडिट जाता है। इन चुनावों में उनकी रणनीति के आगे विपक्षी दल पानी भरते नजर आए और भाजपा को एकतरफा जीत मिली। वहीं, अगस्त में, उन्हें पश्चिम बंगाल, ओडिशा और तेलंगाना का प्रभारी राष्ट्रीय सचिव नियुक्त किया गया था। ये तीनों ऐसे राज्य हें, जहां पर इस समय भाजपा की सरकार नहीं है। सितंबर 2022 में सुनील बंसल ने पश्चिम बंगाल की पहली यात्रा की, जिसे पार्टी में नई ऊर्जा डालने जैसा देखा गया। मालूम हो कि साल 2021 में बंगाल विधानसभा चुनाव में हार मिलने के बाद कई भाजपा नेताओं ने पार्टी छोड़ दी थी और वापस टीएमसी में शामिल हो गए थे। ऐसे में सुनील बंसल को जिम्मेदारी दिए जाने के बाद स्पष्ट हो गया था कि पार्टी बंगाल के लिए बड़ी तैयारी कर रही है। राजस्थान में जन्मे 53 वर्षीय सुनील बंसल का बैकग्राउंड आरएसएस से है और वे स्टूडेंट लाइफ से ही संघ के साथ संपर्क में रहे हैं।

तरुण चुग
तरुण चुग एक और भाजपा नेता है, जिन्होंने एबीवीपी के जरिए बीजेपी में एंट्री ली और फिर पार्टी के लिए महत्वपूर्ण नेता बन गए। अमृतसर से आने वाले 50 वर्षीय तरुण चुग साल 2020 से भाजपा के महासचिव और तेलंगाना के इनचार्ज हैं। उनके तहत बांदी संजय कुमार के नेतृत्व वाली राज्य भाजपा इकाई ने सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के एक प्रमुख नेता एटाला राजेंदर को शामिल करके अपनी रणनीति की ताकत दिखा दी थी। वहीं, पार्टी ने उपचुनावों में दो विधानसभा सीटें भी जीतीं, और दिसंबर 2020 में ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनावों में भी शानदार प्रदर्शन किया। पार्टी से जुड़े एक नेता ने कहा कि जब से चुग ने कार्यभार संभाला है, तेलंगाना बीजेपी यूनिट देश के अन्य यूनिट्स से ज्यादा एक्टिव हो गई है।

विनोद तावड़े
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, तीन सदस्यीय टीम में विनोद तावड़े का नाम होना उनके लिए एक तरह से वापसी मानी जा रही है। दरअसल, भाजपा महासचिव तावड़े साल 2014-2019 के दौरान महाराष्ट्र में साइडलाइन रहे। अब बीजेपी के नेतृत्व ने उन पर फिर से भरोसा जताते हुए अगले लोकसभा चुनाव के लिए बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। फडणवीस के नेतृत्व वाली भाजपा-शिवसेना गठबंधन सरकार में, तावड़े ने स्कूली शिक्षा, चिकित्सा और उच्च तकनीकी शिक्षा, खेल, संस्कृति और मराठी भाषा जैसे महत्वपूर्ण विभागों को संभाला था। लेकिन 2019 में तावड़े को विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट से वंचित कर दिया गया था। उस समय तावड़े ने कथित अपमान को चुपचाप निगल लिया था और एक पार्टी के वफादार की तरह उनकी जगह लेने वाले उम्मीदवार सुनील राणे के लिए काम करना शुरू कर दिया था। विनोद तावड़े ने भी अपने करियर की शुरुआत आरएसएस से जुड़े एबीवीपी से की थी। बाद में वे एबीवीपी के नेशनल प्रेसिडेंट भी बने।

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