संघ के इस कार्यक्रम से लगभग सभी बड़े विपक्षी दलों ने दूरी बनाई जिन्हें आमंत्रित किया गया था। हालांकि इसमें भाजपा के कई नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों के साथ बॉलीवुड अभिनेता, कलाकार और शिक्षाविदों ने भाग लिया। भागवत ने कहा कि भारतीय समाज विविधताओं से भरा है, किसी भी बात में एक जैसी समानता नहीं है, इसलिये विविधताओं से डरने की बजाए, उसे स्वीकार करना और उसका उत्सव मनाना चाहिए। भागवत ने संघ की कार्यप्रणाली की जानकारी देने के साथ ही उन मसलों पर भी राय रखी जिन्हें लेकर अक्सर उस पर सवाल उठाए जाते हैं।
संघ प्रमुख ने साफ किया कि उनका संगठन अपना प्रभुत्व नहीं चाहता। उन्होंने कहा कि अगर संघ के प्रभुत्व के कारण कोई बदलाव होगा तो यह संघ की पराजय होगी । हिन्दू समाज की सामूहिक शक्ति के कारण बदलाव आना चाहिए। भागवत ने अपने संबोधन में सरकार या किसी संगठन का नाम नहीं लिया। उन्होंने कहा, संघ का स्वयंसेवक क्या काम करता है, कैसे करता है, यह तय करने के लिये वह स्वतंत्र है।
उन्होंने कहा, संघ केवल यह चिंता करता है कि वह गलती न करे। सरकार और संघ के बीच समय समय पर होने वाली समन्वय बैठकों का परोक्ष तौर पर जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि समन्वय बैठक इसलिये होती है कि स्वयंसेवक विपरीत परिस्थितियों में अलग अलग क्षेत्रों में काम करते हैं। ऐसे में उनके पास कुछ सुझाव भी होते हैं। वे अपने सुझाव देते हैं, उस पर अमल होता है या नहीं होता इससे उन्हें मतलब नहीं।
संघ में महिलाओं की भागीदारी के सवाल पर भागवत का कहना था कि डा. हेडगेवार के समय ही यह तय हुआ था कि राष्ट्र सेविका समिति महिलाओं के लिए संघ के समानांतर कार्य करेगी। उन्होंने साफ किया कि इस सोच में बदलाव की जरूरत यदि पुरुष व महिला संगठन दोनों ओर से महसूस की जाती है तो विचार किया जा सकता है अन्यथा यह ऐसे ही चलेगा।